फ़हमीदा रियाज़ की कहानियाँ
दफ़्तर में एक दिन
दफ़्तर में एक दिन, दफ़्तरी निज़ाम में पाई जाने वाली ख़राबियों को बयान करने के साथ ज़बान के मुआमले में कट्टर-पंथी को पेश करती है। इस के अलावा किसी काम की तकमील के लिए तोहफ़े, अक़रिबा-परवरी और यकसाँ फ़िरक़े से ताल्लुक़ रखने वाले अफ़राद की क्या हैसियत होती है उसे वाज़िह करती है।
फ़ेअल-ए-मुतअद्दी
इस अफ़साने में उर्दू ज़बान की बक़ा उसके निफ़ाज़ नीज़ दीगर ज़बानों की तहज़ीब को मौज़ूअ बनाया है और उसके पस-ए-पर्दा दफ़्तर के मुलाज़िमीन के काम की नौईयत और हक़ाएक़ को पेश किया है। कहानी में दफ़्तर के इंतिज़ामी उमूर की सूरत-ए-हाल को बयान करने के साथ, मुअक़्क़र अदीबों की बे-वक़्अती, इदारों की ग़ैर-ज़िम्मेदारी और ना-अहली को भी वाज़िह किया है।