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फ़ैसल फ़हमी

मशहूर नौजवान शायर, शायरी में पुरानी रिवायात और नए ख़यालात का संगम, सादा लम्हों को ख़ास बना देने का ख़ूबसूरत हुनर

मशहूर नौजवान शायर, शायरी में पुरानी रिवायात और नए ख़यालात का संगम, सादा लम्हों को ख़ास बना देने का ख़ूबसूरत हुनर

फ़ैसल फ़हमी

ग़ज़ल 11

नज़्म 2

 

अशआर 8

किसी फ़र्द-ए-मोहब्बत से भला उम्मीद क्या रखना

मोहब्बत बेवफ़ा थी बेवफ़ा है बेवफ़ा होगी

पहले तमाम शहर को सहरा बनाएँगे

फिर वहशतों की रेत पे सोया करेंगे हम

ता-उम्र तिफ़्ल-ए-दिल पे यतीमी का कर्ब था

कोशिश तो की मगर मैं कभी माँ बन सका

तारीक सराबों की चका-चौंद में गुम-सुम

था सख़्त मुसलमान मैं ईमान से पहले

मैं अपने आप का सब से बड़ा मुख़ालिफ़ हूँ

मिरी ही तरह का इक शख़्स और है मुझ में

चित्र शायरी 2

 

वीडियो 3

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

फ़ैसल फ़हमी

उजाड़ दूँ मैं ये दुनिया वो ज़ोर है मुझ में

फ़ैसल फ़हमी

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