फ़ैज़ान हाशमी
ग़ज़ल 9
अशआर 9
बहुत क़दीम नहीं कल का वाक़िआ है ये
मैं इस ज़मीन पे उतरा था तेरी ज़ात के साथ
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बस यही सोच के रहता हूँ मैं ज़िंदा इस में
ये मोहब्बत है कोई मर नहीं सकता इस में
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मैं अपनी ख़ुशियाँ अकेले मनाया करता हूँ
यही वो ग़म है जो तुझ से छुपा हुआ है मिरा
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वो क्या ख़ुशी थी जो दिल में बहाल रहती थी
मगर वज्ह नहीं बनती थी मुस्कुराने की
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मैं उस को ख़्वाब में कुछ ऐसे देखा करता था
तमाम रात वो सोते में मुस्कुराती थी
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