फ़ाख़िरा बतूल के शेर
आप की जानिब से आए तो उठा कर रख लिए
पत्थरों से घर सजाने का कभी सोचा न था
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उस से बिछड़ के दिल का हुआ है अजीब हाल
पाने की आरज़ू गई खोने का डर गया
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नाम तुम्हारा हाथ पे लिखना याद रहा
हम उस को तक़दीर बनाना भूल गए
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बहुत कड़ा था वो लम्हा जुदा हुए जिस पल
अजब है फिर भी मिरे तन में जान बाक़ी है
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