फ़ख़रुद्दीन ख़ाँ माहिर
ग़ज़ल 8
अशआर 4
नहीं है ख़ूब सोहबत हर किसी कम-ज़र्फ़ से लेकिन
नहीं गर मानते अज़-राह-ए-नादानी तो बेहतर है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere