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फ़रहत कानपुरी

1905 - 1952 | कानपुर, भारत

फ़रहत कानपुरी

ग़ज़ल 10

अशआर 6

दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से

कोई भी राहबर नहीं होता

दुनिया ने ख़ूब समझा दुनिया ने ख़ूब परखा

मेरी नज़र को देखा जब आप की नज़र से

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आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर

दिल ही में रह जाओ आँखों से निहाँ हो कर

दौलत-ए-अहद-ए-जवानी हो गए

चंद लम्हे जो कहानी हो गए

'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में

वल्लाह तिरा रंग-ए-सुख़न याद रहेगा

रुबाई 2

 

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