फ़ारूक़ बाँसपारी
ग़ज़ल 7
अशआर 8
मिरे नाख़ुदा न घबरा ये नज़र है अपनी अपनी
तिरे सामने है तूफ़ाँ मिरे सामने किनारा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
यक़ीं मुझे भी है वो आएँगे ज़रूर मगर
वफ़ा करेगी कहाँ तक कि ज़िंदगी ही तो है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ग़म-ए-इश्क़ ही ने काटी ग़म-ए-इश्क़ की मुसीबत
इसी मौज ने डुबोया इसी मौज ने उभारा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
कभी जज़्ब-ए-वालहाना कभी ज़ब्त-ए-आरिफ़ाना
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
सितारों से शब-ए-ग़म का तो दामन जगमगा उठ्ठा
मगर आँसू बहा कर हिज्र के मारों ने क्या पाया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए