Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Farrukh Jafari's Photo'

फ़र्रुख़ जाफ़री

1941 | इलाहाबाद, भारत

फ़र्रुख़ जाफ़री के शेर

कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे

मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता

थे उस के हाथ लहू में हमारे ग़र्क़ मगर

ज़रा भी शर्म आई उसे मुकरते हुए

हर रोज़ दिखाई दें सब लोग वहीं लेकिन

जब ढूँडने निकलें तो मिलता ही नहीं कोई

इस राज़ के बातिन तक पहुँचा ही नहीं कोई

क्यूँ लौट के घर अपने आया ही नहीं कोई

हिजाब उस के मिरे बीच अगर नहीं कोई

तो क्यूँ ये फ़ासला-ए-दरमियाँ नहीं जाता

मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें

दरमियाँ के फ़ासले का तय सफ़र कैसे करें

जिस्म के अंदर जो सूरज तप रहा है

ख़ून बन जाए तो फिर ठंडा करेंगे

ये और बात कि वो तिश्ना-ए-जवाब रहा

सवाल उस का मगर गूँजता फ़ज़ा में था

Recitation

बोलिए