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फ़ौज़िया रबाब

1988 | गोवा, भारत

नई नस्ल की शायरा, आसान ज़बान में शायरी के मशहूर

नई नस्ल की शायरा, आसान ज़बान में शायरी के मशहूर

फ़ौज़िया रबाब

ग़ज़ल 18

नज़्म 1

 

अशआर 17

कुछ इस लिए भी मुझे कामयाबी मिलती है

मैं अपने बाबा के नक़्श-ए-क़दम पे चलती हूँ

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कूज़ा-गर मैं तिरी मोहब्बत में

अपनी सूरत बिगाड़ लेती हूँ

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तुम्हारी याद है मातम-कुनाँ अभी मुझ में

तुम्हारा दर्द अभी तक सियह लिबास में है

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देख सुक़रात ने बस ज़हर पिया था लेकिन

ज़िंदगी मैं तो तुझे घोल के पी जाऊँगी

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वक़्त जब आइना दिखाता है

आदमी ख़ुद को भूल जाता है

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पुस्तकें 1

 

वीडियो 4

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

फ़ौज़िया रबाब

फ़ौज़िया रबाब

फ़ौज़िया रबाब

फ़ौज़िया रबाब

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