फ़िक्र तौंसवी के हास्य-व्यंग्य
कुछ सवाल, कुछ जवाब
सवाल, “सोशलिज़्म के नारे की कितनी अहमियत है?” जवाब, “अमीरों की डाइनिंग टेबल के एक लुक़्मे की।” सवाल, “वो लोग कहाँ गए जो कहा करते थे मुल्क में इन्क़लाब लाएँगे।” जवाब, “वो मुंदरजा ज़ैल मुक़ामात पर मिल जाएंगे।” (1) पब्लिक पार्क में गली सड़ी मूंगफलियाँ
लुग़ात-ए-फ़िक्री
इलेक्शन, एक दंगल जो वोटरों और लीडरों के दरमियान होता है और जिसमें लीडर जीत जाते हैं, वोटर हार जाते हैं। इलेक्शन प्टीशन, एक खंबा जिसे हारी हुई बिल्ली नोचती है। वोट, चियूंटी के पर, जो बरसात के मौसम में निकल आते हैं। वोटर, आँख से गिर कर मिट्टी
और सांई बाबा ने कहा
मुँह-माँगी मौत एक नहीफ़-ओ-नज़ार बूढ़ा झीलंगी चारपाई पर पड़ा कराह रहा था और कह रहा था, “आह न जाने मौत कब आएगी?” इतने में मौत आगई और बोली, “बाबा मैं आगई हूँ।” बूढ़ा नाराज़ हो कर बोला, “बड़ी बेवक़ूफ़ हो। मैंने तो अपने लड़के को बुलाया था कि वो आकर मेरी ख़बरगीरी