ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी के शेर
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को
तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है
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टैग : ज़ुल्फ़
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