करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
ग़ुलाम मुहम्मद क़ासिर 4 सितंबर 1941 को पहाड़पूर (डेरा इस्माईल ख़ाँ) में पैदा हुए। 1958 में मैट्रिक का इम्तिहान पास किया। पहले अपने तौर पर फ़ाज़िल-ए-उर्दू और फिर एम.ए. (उर्दू) के इम्तिहानात पास किए। मैट्रिक के बाद टीचर की हैसियत से मुलाज़िमत का आग़ाज़ किया। 1975 से गर्वनमैंट पोस्ट ग्रैजूएट कॉलेज मरदान में शोबा-ए-उर्दू से वाबस्ता रहे। 20 फ़रवरी 1999 को पेशावर में इंतिक़ाल कर गए। उनका मज्मूआ-ए-कलाम 'तसलसुल' के नाम से शाए हो गया है। उनकी दीगर तसानीफ़ के नाम ये हैं : 'दरिया-ए-गुमान', 'आठवाँ आसमान भी नीला है'। उन्हें सदारती एवार्ड बराए हुस्न-ए-कारकर्दगी से नवाज़ा गया।