गोपाल मित्तल के क़िस्से
शायर या दर्ज़ी
गोपाल मित्तल से किसी ने दरियाफ़्त किया, “क्यों साहब! आपने अपनी फ़ुलां नज़्म कांग्रेसियों के लिए लिखी थी या कम्युनिस्टों के लिए?” मित्तल ने जवाबन कहा, “साहब! मैं तो दर्ज़ी हूँ। मेरा काम टोपियां सीना है, जिसके सर पर जो पूरी आजाए पहन ले।”