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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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गुलज़ार मुरादाबादी

1988 | रियाज़, सउदी अरब

गुलज़ार मुरादाबादी

ग़ज़ल 4

 

अशआर 3

बड़ा दिलचस्प और राहत भरा था ये सफ़र अपना

चलो अब अपनी अपनी राह चलते हैं ख़ुदा-हाफ़िज़

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हम कहाँ सँभले बिछड़ कर उस से हाँ कह सकते हो

दिल लगाने की सज़ा है दिल लगाने की सज़ा

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तपिश से धूप की दीवार भी तप जाएगी 'गुलज़ार'

तो बेहतर है कि ढूँडो तुम किसी गुलज़ार का साया

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