हादी मछलीशहरी
ग़ज़ल 15
अशआर 14
ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
क्या दवा क्या दुआ करे कोई
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तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
किस से किस का गिला करे कोई
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वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
जवाब में फ़क़त आँसू बहाए जाते हैं
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उस ने इस अंदाज़ से देखा मुझे
ज़िंदगी भर का गिला जाता रहा
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मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका
फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं
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