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हैदर इलाहाबादी

2004 | इलाहाबाद, भारत

हैदर इलाहाबादी

ग़ज़ल 11

अशआर 20

तिरी याद आई तो कहती हैं आँखें

अब आँखों से आँसू बहाना पड़ेगा

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छत पे आई हो आज बरसों बा'द

देख कर चाँद डर जाए कहीं

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तेरे जाने के बाद देख ज़रा

कितना बर्बाद हो गया हूँ मैं

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अपने बिस्तर पे दम तोड़ दें हम

तेरी बातों को याद कर कर के

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अपनी इस पाक निगाहों से हमें देखो तो

हम कहीं और नहीं दिल में तिरे रहते हैं

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क़ितआ 2

 

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