हमीद कौसर के शेर
वो एक शख़्स कि गुमनाम था ख़ुदाई में
तुम्हारे नाम के सदक़े में नामवर ठहरा
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वही देखूँ जिसे देखा न जाए
ये मंज़र और कितनी बार देखूँ
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