हनीफ़ साजिद के शेर
इंक़लाब-ए-सुब्ह की कुछ कम नहीं ये भी दलील
पत्थरों को दे रहे हैं आइने खुल कर जवाब
पत्थरों से कब तलक बाँधेगी उम्मीद-ए-वफ़ा
ज़िंदगी देखेगी कब तक जागती आँखों से ख़्वाब
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