उपनाम : ''रेहानी''
मूल नाम : रेवरेंड शिफ़ाअ’त
जन्म : 19 May 1912 | आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश
निधन : 12 Mar 1976
ग़म की तकमील का सामान हुआ है पैदा
लाइक़-ए-फ़ख़्र मिरी बे-सर-ओ-सामानी है
सैयद याद अली जैदी के बेटे हेंसन रेहानी लखनवी, रियूरंड शफ़ाअत का पैतृक गाँव आजमगढ़ था। पिता रोज़गार के लिए लखनऊ आये और फिर यहीं बस गए। रेहानी 19 मई 1912 को आजमगढ़ में ही जन्मे लेकिन उनकी शिक्षा-दीक्षा लखनऊ में हुई। दसवीं के बाद ही शिक्षण का काम करने लगे। मदरसा आलिया के विख्यात शिक्षक सैयद औलाद हुसैन शादाँ बलगिरामी से निजी तौर पर फारसी पढ़ी। इलाहाबाद और हैदराबाद में भी अपने शिक्षण कर्तव्यों का पालन किया। कहते हैं इलाहाबाद के प्रवास के दौरान बिशप जॉन बनर्जी की तहरीक पर ईसाई हो गए। पादरी बनने के लिए उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी । 1953 में पादरी बन गए और मैथ्यू डस्ट भारतीय चर्च के कर्मीदल में बतौर पास्टर शामिल हो गए । यहां उनका संबंध संस्था के पत्राचार पाठ्यक्रम बाइबिल से था, जिसके वो निदेशक थे। उर्दू और फ़ारसी में शेर कहते थे। उर्दू में मिर्ज़ा जाफर अली खान असर लखनवी से परामर्श किया। उन्होंने भारत के ईसाई शायरों का कलाम भी सम्पादित किया। फ़ारसी कलाम फ़र्रुख़ शिराज़ी को दिखाते थे। उनका शेरी संग्रह मौज-ए-गुल के शीर्षक से 1965 में प्रकाशित हुआ।12 मार्च 1976 को उनका निधन गया।