हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल 22
नज़्म 9
अशआर 20
आँखों से ख़्वाब दिल से तमन्ना तमाम-शुद
तुम क्या गए कि शौक़-ए-नज़ारा तमाम-शुद
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किस को थी ख़बर इस में तड़ख़ जाएगा दिल भी
हम ख़ुश थे बहुत सेहन में दीवार उठा कर
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जुदाई की रुतों में सूरतें धुँदलाने लगती हैं
सो ऐसे मौसमों में आइना देखा नहीं करते
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तुझ से बिछड़ के सम्त-ए-सफ़र भूलने लगे
फिर यूँ हुआ हम अपना ही घर भूलने लगे
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ये कार-ए-इश्क़ तो बच्चों का खेल ठहरा है
सो कार-ए-इश्क़ में कोई कमाल क्या करना
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