हसन अब्बासी
ग़ज़ल 15
अशआर 10
हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर
मैं अपने घर के अँधेरे कमरों में लौट आया
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मोहब्बत में कठिन रस्ते बहुत आसान लगते थे
पहाड़ों पर सुहुलत से चढ़ा करते थे हम दोनों
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मुझ को मालूम था इक रोज़ चला जाएगा!
वो मिरी उम्र को यादों के हवाले कर के
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कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे
तिरे तसव्वुर में हम ने कर ली किताब आगे
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