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हसन नासिर

1943 - 2004 | पाकिस्तान

हसन नासिर

ग़ज़ल 5

 

अशआर 4

दरख़्त कट गया लेकिन वो राब्ते 'नासिर'

तमाम रात परिंदे ज़मीं पे बैठे रहे

क्या ख़बर कब लौट आएँ अजनबी देसों से वो

पेड़ पर महफ़ूज़ उन के घोंसले रख छोड़ना

अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है

बिखर गए हैं वो चेहरे जो अक्स बनते रहे

वो चाँद जो उतरा है किसी और के घर में

मुझ को तो अँधेरों से रिहाई नहीं देगा

पुस्तकें 1

 

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