हसन नासिर
ग़ज़ल 5
अशआर 4
दरख़्त कट गया लेकिन वो राब्ते 'नासिर'
तमाम रात परिंदे ज़मीं पे बैठे रहे
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क्या ख़बर कब लौट आएँ अजनबी देसों से वो
पेड़ पर महफ़ूज़ उन के घोंसले रख छोड़ना
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अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है
बिखर गए हैं वो चेहरे जो अक्स बनते रहे
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वो चाँद जो उतरा है किसी और के घर में
मुझ को तो अँधेरों से रिहाई नहीं देगा
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