हाशिम अज़ीमाबादी के शेर
बेगम भी हैं खड़ी हुई मैदान-ए-हश्र में
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
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होंट की शीरीनियाँ कॉलेज में जब बटने लगीं
चार दिन के छोकरे करने लगे फ़रहादियाँ
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गोग्गल लगा के आँख पर चलने लगे हसीन
वो लुत्फ़ अब कहाँ निगह-ए-नीम-बाज़ का
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