हाशिम रज़ा जलालपुरी के शेर
सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के
ज़िंदगी जीते हैं कुछ लोग ख़सारा कर के
हम से आबाद है ये शेर-ओ-सुख़न की महफ़िल
हम तो मर जाएँगे लफ़्ज़ों से किनारा कर के
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हम बे-नियाज़ बैठे हुए उन की बज़्म में
औरों की बंदगी का असर देखते रहे
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