हयात वारसी के शेर
है इख़्तियार हमें काएनात पर हासिल
सवाल ये है कि हम किस के इख़्तियार में हैं
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हमें उजाल दे फिर देख अपने जल्वों को
हम आइना हैं मगर पर्दा-ए-ग़ुबार में हैं
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