हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल 5
नज़्म 1
अशआर 3
हम इस शहर-ए-जफ़ा-पेशा से कुछ उम्मीद क्या रक्खें
यहाँ इस हाव-हू में ख़ामुशी को कौन लिक्खेगा
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दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है
ग़ज़ब की धूप में बरसात थोड़ी होती है
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है जब तक दश्त-पैमाई सलामत
रहेगी आबला-पाई सलामत
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