हिलाल बदायूँनी
ग़ज़ल 10
अशआर 17
कुछ और दे न पाए ज़माने को हम 'हिलाल'
पैग़ाम-ए-अम्न देंगे इसी शायरी से हम
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जब छुआ होगा उस ने फूलों को
होश ख़ुशबू के उड़ गए होंगे
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ग़रीब शख़्स को मिलता नहीं किसी भी तरह
ये इश्क़ हो गया सरकारी नौकरी की तरह
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कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दूँ
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर
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- ग़ज़ल देखिए
तुम्हारे सामने जज़्बात सारे खोल सकता हूँ
जो सुनना चाहते हो तुम मैं वो भी बोल सकता हूँ
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