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हिमायत अली शाएर

1926 - 2019 | टोरंटो, कनाडा

हिमायत अली शाएर

ग़ज़ल 30

नज़्म 14

अशआर 26

अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे

था नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था

इस जहाँ में तो अपना साया भी

रौशनी हो तो साथ चलता है

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तुझ से वफ़ा की तो किसी से वफ़ा की

किस तरह इंतिक़ाम लिया अपने आप से

फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस कर

हासिल-ए-ग़म को ख़ुदा-रा ग़म-ए-हासिल बना

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'शाइर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप

ठोकरें खा कर तो सुनते हैं सँभल जाते हैं लोग

पुस्तकें 25

वीडियो 18

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

हिमायत अली शाएर

हिमायत अली शाएर

हिमायत अली शाएर

हिमायत अली शाएर

दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो

हिमायत अली शाएर

हारून की आवाज़

देखो अभी है वादी-ए-कनआँ निगाह में हिमायत अली शाएर

अन-कही

तुझ को मालूम नहीं तुझ को भला क्या मालूम हिमायत अली शाएर

अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो

हिमायत अली शाएर

आईना-दर-आईना

इस बार वो मिला तो अजब उस का रंग था हिमायत अली शाएर

उस के ग़म को ग़म-ए-हस्ती तू मिरे दिल न बना

हिमायत अली शाएर

कब तक रहूँ मैं ख़ौफ़-ज़दा अपने आप से

हिमायत अली शाएर

दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो

हिमायत अली शाएर

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

ऑडियो 10

अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

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