हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल 30
नज़्म 14
अशआर 26
अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे
था नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था
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मैं कुछ न कहूँ और ये चाहूँ कि मिरी बात
ख़ुश्बू की तरह उड़ के तिरे दिल में उतर जाए
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तुझ से वफ़ा न की तो किसी से वफ़ा न की
किस तरह इंतिक़ाम लिया अपने आप से
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