हुमैरा रहमान
ग़ज़ल 11
नज़्म 2
अशआर 9
कंकर फेंक रहे हैं ये अंदाज़ा करने को
ठहरा पानी कितनी 'हुमैरा' हलचल रखता है
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मिरी अलमारियों में क़ीमती सामान काफ़ी था
मगर अच्छा लगा उस से कई फ़रमाइशें करना
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वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे
मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई
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हम और तुम जो बदल गए तो इतनी हैरत क्या
अक्स बदलते रहते हैं आईनों की ख़ातिर
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हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें
जो दोश पर लिए हो उस के बर-ख़िलाफ़ क्या करें
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वीडियो 7
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