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हुसैन माजिद

1947 | दिल्ली, भारत

हुसैन माजिद

ग़ज़ल 4

 

अशआर 5

उस का चेहरा उदास है 'माजिद'

आईने पर नज़र गई होगी

कल जो मैं ने झाँक के देखा उस की नीली आँखों में

उस के दिल का ज़ख़्म तो 'माजिद' सागर से भी गहरा है

कहने की तो बात नहीं है लेकिन कहनी पड़ती है

दिल की नगरी में मत जाना जो जाए पछताए

'माजिद' ख़ुदा के वास्ते कुछ देर के लिए

रो लेने दे अकेला मुझे अपने हाल पर

लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए

हम ने अपना अंतर खोजा दीवाने कहलाए

पुस्तकें 2

 

ऑडियो 4

तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर

धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है

लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए

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