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इब्न-ए-इंशा

1927 - 1978 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तानी शायर , अपनी ग़ज़ल ' कल चौदहवीं की रात ' थी , के लिए प्रसिद्ध

पाकिस्तानी शायर , अपनी ग़ज़ल ' कल चौदहवीं की रात ' थी , के लिए प्रसिद्ध

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

इब्न-ए-इंशा

इब्न-ए-इंशा

इब्न-ए-इंशा

इब्न-ए-इंशा

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

दरवाज़ा खुला रखना

दिल दर्द की शिद्दत से ख़ूँ-गश्ता ओ सी-पारा इब्न-ए-इंशा

दिल इक कुटिया दश्त किनारे

दुनिया-भर से दूर ये नगरी इब्न-ए-इंशा

फ़र्ज़ करो

फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना इब्न-ए-इंशा

कुछ दे इसे रुख़्सत कर

कुछ दे इसे रुख़्सत कर क्यूँ आँख झुका ली है इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

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"Masla bachon ke namon ka" by Ibn-e-Insha.

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Ibn e Insha - Bahadur Allah Ditta

Ibn e Insha - Bahadur Allah Ditta ज़िया मोहीउद्दीन

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Ibn-e-Insha (Faiz sahib pe Mazahiya khaka)

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'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या हामिद अली ख़ान

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या अमानत अली ख़ान

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एक बार कहो तुम मेरी हो अहमद जहांजेब

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

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