aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1924 - 1977 | पाकिस्तान
प्रसिद्ध पाकिस्तानी अफ़साना निगार और पत्रकार. ड्रामे और यात्रावृतांत भी लिखे।
फ़ैक्ट्री में काम करने वाले एक ऐसे मज़दूर की कहानी है, जो तनख़्वाह वाले दिन बहुत ख़ुश होता है। पिछले उन्तीस दिनों में काम करते हुए उसे इतनी ख़ुशी नहीं होती, जितनी आज हो रही है। वह सोचता है कि आज उसे तनख़्वाह मिलेगी तो उसके घर में भी गोश्त बनेगा। वह बीवी बच्चों के लिए नए कपड़े और कुछ अच्छी चीज़ें ख़रीदेगा। शाम को शकुंतला का नाटक देखने जाएगा। मगर जब वह घर जाता है तो वहाँ पहले से लेनदार मौजूद होते हैं और न चाहते हुए भी उसे तनख़्वाह के सारे पैसे उनके हवाले कर देना पड़ता है।
यह एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसके साथ की सभी लड़कियों की शादी हो गई है, लेकिन वह अभी तक कुँवारी है। उसका भाई अपनी बहन के ज़र्द चेहरे पर सुर्ख़ी लाने के लिए दिन-रात मेहनत करता है और अपनी सारी इच्छाओं को दफ़न कर देता है। आख़िरकार वह अपनी बहन की शादी करने में कामयाब हो जाता है। इस परेशानी और मुसीबत से उसके अपने चेहरे की सुर्ख़़ी ज़र्दी में बदल जाती है। तभी उसकी ज़िंदगी में मिशनरी में काम करने वाली एक नन आती है। काफी दिनों बाद जब उसे पता चलता है कि उस नन का उसके बहनोई के साथ भी चक्कर है तो वह अपनी बहन के चेहरे की सुर्ख़़ी को बरक़रार रखने के लिए उस नन की हत्या कर देता है।
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