इबरत सिद्दीक़ी के शेर
ख़ुद-कुशी जुर्म भी है सब्र की तौहीन भी है
इस लिए इश्क़ में मर मर के जिया जाता है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere