इदरीस बाबर
ग़ज़ल 38
अशआर 40
हाथ दुनिया का भी है दिल की ख़राबी में बहुत
फिर भी ऐ दोस्त तिरी एक नज़र से कम है
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आज तो जैसे दिन के साथ दिल भी ग़ुरूब हो गया
शाम की चाय भी गई मौत के डर के साथ साथ
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मौत की पहली अलामत साहिब
यही एहसास का मर जाना है
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अब तो मुश्किल है किसी और का होना मिरे दोस्त
तू मुझे ऐसे हुआ जैसे क्रोना मिरे दोस्त
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टेंशन से मरेगा न क्रोने से मरेगा
इक शख़्स तिरे पास न होने से मरेगा
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