इफ़्तिख़ार आज़मी
ग़ज़ल 4
नज़्म 8
अशआर 4
हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब
फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे
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कितना सुनसान है रस्ता दिल का
क़ाफ़िला कोई लुटा हो जैसे
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अजब तनाव है माहौल में कहें किस से
कहीं पे आज कोई हादसा हुआ तो नहीं
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शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब
रुक गए अपने क़दम आए जो मंज़िल के क़रीब
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