इमाम दीन गुजराती के शेर
न मेरी आँख न क़ल्ब-ओ-जिगर में रहता है
वो दर्द बन के मिरे आधे सर में रहता है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere