इम्दाद आकाश के शेर
उस पर ही भेजता है वो आफ़त भी मौत भी
शायद उसे ग़रीब का बच्चा है ना-पसंद
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अज़ीज़ गर था तअल्लुक़ तो किस लिए तोड़ा
जब इख़्तिलाफ़ किया तो मुफ़ाहमत कैसी
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