इंद्र सराज़ी
ग़ज़ल 4
अशआर 28
दुख उदासी मलाल ग़म के सिवा
और भी है कोई मकान में क्या
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बड़ी मुश्किल से बहलाया था ख़ुद को
अचानक याद तेरी आ गई फिर
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जिस का डर था वही हुआ यारो
वो फ़क़त हम से ही ख़फ़ा निकला
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सावन की इस रिम-झिम में
भीग रहा है तन्हा चाँद
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कितना प्यारा लगता है
होता है जब पूरा चाँद
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