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इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

ग़ज़ल 5

 

अशआर 5

बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था

रस्ता रस्ता मेरा रस्ता देख रहा था

मैं नहीं मिलता किसी से

बंद फाटक बोलता है

जब साया भी शीशे की तरह टूट गया

दीवार ने देखा ये तमाशा कभी

रोता है कोई किसी के ग़म में

सब अपने ही दुख बिचारते हैं

सरहद-ए-जाँ तलक क़लम-रौ दिल

इस से आगे निज़ाम दर्द का है

पुस्तकें 9

 

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