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इक़बाल सफ़ी पूरी

1916 - 1999

इक़बाल सफ़ी पूरी

ग़ज़ल 5

 

अशआर 4

मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया

जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने

कोई समझाए कि क्या रंग है मयख़ाने का

आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का

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कौन जाने कि इक तबस्सुम से

कितने मफ़्हूम-ए-ग़म निकलते हैं

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चश्म-ए-साक़ी मुझे हर गाम पे याद आती है

रास्ता भूल जाऊँ कहीं मयख़ाने का

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