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इश्क़ औरंगाबादी

- 1780 | औरंगाबाद, भारत

इश्क़ औरंगाबादी

ग़ज़ल 40

अशआर 18

कहियो ख़ुद-बीं से कि आईने में तन्हा मत बैठ

ख़तर आसेब का रहता है परी-ख़ाने में

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गर शैख़ ने आह की तो मत भूल

दिल में पत्थर के भी शरर है

तू ने क्या देखा नहीं गुल का परेशाँ अहवाल

ग़ुंचा क्यूँ ऐंठा हुआ रहता है ज़रदार की तरह

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नहीं मालूम दिल में बैठ के कौन

चश्म की दूरबीं से देखे है

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मुक़ाबिल हो हमारे कस्ब-ए-तक़लीदी से क्या ताक़त

अभी हम महव कर देते हैं आईने को इक हू में

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