इश्तियाक तालिब के शेर
चाँद हैं न तारे हैं आसमाँ के आँगन में
रक़्स करते हैं शोले अब तो शब के दामन में
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नज़र आती नहीं सड़कों पे लाशें
अमीर-ए-शहर अंधा हो गया है
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