इस्माईल राज़
ग़ज़ल 43
नज़्म 3
अशआर 5
दीवानगी का सबब पूछा जा रहा था मिरी
मैं चुप था और हुजूम उस का नाम ले रहा था
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हिज्र की रात है और आँख में आँसू भी नहीं
ऐसे मौसम में तो बरसात हुआ करती थी
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जो अपना हिस्सा भी औरों में बाँट देता है
इक ऐसे शख़्स के हिस्से में आ गए थे हम
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दर-अस्ल मैं ने मशक़्क़त नहीं मोहब्बत की
हथेलियों पे नहीं मेरे दिल पे छाले हैं
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उस वक़्त के सदमों ने मुझे चाट लिया है
जो वक़्त अभी मैं ने गुज़ारा भी नहीं था
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