जाह कानपुरी के शेर
क्या जल्द गुज़रती हैं शब-ए-वस्ल की घड़ियाँ
इक हिज्र का दिन है कि गुज़रता ही नहीं है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere