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जयकृष्ण चौधरी हबीब

1904 | जबलपुर, भारत

उर्दू कवि, फ़ारसी और संस्कृत के विद्वान, स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे

उर्दू कवि, फ़ारसी और संस्कृत के विद्वान, स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे

जयकृष्ण चौधरी हबीब

ग़ज़ल 70

नज़्म 15

अशआर 57

इस सीना-ए-वीराँ में खिलाए कभी फूल

क्यों बाग़ पे इतराती रही बाद-ए-सबा है

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इंसाँ के दिल की ख़ैर ज़मीं आसमाँ की ख़ैर

हर रोज़ गुल खिलाते हैं इंसाँ नए नए

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दिल टूट के ही आख़िर बनता है किसी क़ाबिल

तख़रीब के पर्दे में ता'मीर नज़र आई

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बेदाद-ए-मुक़द्दर से दिल मेरा उलझता है

जब आप नज़र मुझ पर कुछ लुत्फ़ से करते हैं

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हवस ने हुस्न की ऐसी बिगाड़ दी सूरत

'हबीब' कौन है जो उस को आज पहचाने

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क़ितआ 21

पुस्तकें 1

 

ऑडियो 9

jaikrishn chaudhrii habiib

उमीद-ए-दीद काम आए न आए

कभी तवील कभी मुख़्तसर भी होती है

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