जली अमरोहवी के शेर
वहम-ओ-गुमाँ ने आस बँधाई तमाम रात
आहट ख़िराम-ए-नाज़ की आई तमाम रात
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आप आते हैं तो आ जाएँ मगर ये शर्त है
मुझ से बरगश्ता न हो जाएँ मिरी तन्हाइयाँ
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