जमील जालिबी की बच्चों की कहानियाँ
दो दोस्त दो दुश्मन
घने जंगल में एक दलदल के क़रीब बरसों से एक चूहा और एक मेंढक रहते थे। बातचीत के दौरान एक दिन मेंढक ने चूहे से कहा, “इस दलदल में मेरा ख़ानदान सदियों से आबाद है और इसीलिए ये दलदल जो मुझे बाप-दादा से मिली है, मेरी मीरास है।” चूहा इस बात पर चिड़ गया। उसने
दो चूहे
दो चूहे थे जो एक दूसरे के बहुत गहरे दोस्त थे। एक चूहा शह्र की एक हवेली में बिल बना कर रहता था और दूसरा पहाड़ों के दरमियान एक गाँव में रहता था। गाँव और शह्र में फ़ासला बहुत था, इसलिए वो कभी-कभार ही एक दूसरे से मिलते थे। एक दिन जो मुलाक़ात हुई तो गाँव
नादान बकरी
इत्तेफ़ाक़ से एक लोमड़ी एक कुँएँ में गिर पड़ी। उसने बहुत हाथ पैर मारे और बाहर निकलने की हर तरह कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुई। अभी वो कोशिश कर ही रही थी कि इतने में एक बकरी पानी पीने के लिए वहाँ आ निकली। बकरी ने लोमड़ी से पूछा, “ऐ बहन ये बताओ कि पानी
ना-शुक्रा हिरन
ये उस ज़माने का ज़िक्र है जब बंदूक़ ईजाद नहीं हुई थी और लोग तीर कमान से शिकार खेलते थे। एक दिन कुछ शिकारी शिकार की तलाश में जंगल में फिर रहे थे कि अचानक उनकी नज़र एक हिरन पर पड़ी। वो सब उसके पीछे हो लिए। शिकारी हिरन को चारों तरफ़ से घेर रहे थे और हिरन
क़िस्सा एक भेड़िए का
एक दफ़ा' का ज़िक्र है कि चाँदनी रात में एक दुबले-पतले, सूखे-मारे भूके भेड़िए की एक ख़ूब खाए पीए, मोटे-ताज़े कुत्ते से मुलाक़ात हुई। दुआ-सलाम के बाद भेड़िए ने उससे पूछा, “ऐ दोस्त तू तो ख़ूब तर-ओ-ताज़ा दिखाई देता है। सच कहता हूँ कि मैंने तुझसे ज़्यादा मोटा-ताज़ा
नादानी की सज़ा
गर्मी में एक शेर शिकार को निकला। चिलचिलाती धूप में, तपती हुई ज़मीन पर चलने से वो जल्द ही थक गया और एक बड़े से साया-दार घने दरख़्त के नीचे आराम करने लेट गया। अभी वो सोया ही था कि कुछ चूहे अपने बिलों से बाहर निकले और नादानी से उसकी पीठ पर उछलने कूदने लगे।