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जमील मज़हरी

1904 - 1979 | कोलकाता, भारत

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायर, अपने अपारम्परिक विचारों के लिए विख्यात

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायर, अपने अपारम्परिक विचारों के लिए विख्यात

जमील मज़हरी

ग़ज़ल 39

नज़्म 7

अशआर 11

आया ये कौन साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में

पेशानी-ए-सहर का उजाला लिए हुए

किसे ख़बर थी कि ले कर चिराग़-मुस्तफ़वी

जहाँ में आग लगाती फिरेगी बू-लहबी

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ब-क़द्र-ए-पैमाना-ए-तख़य्युल सुरूर हर दिल में है ख़ुदी का

अगर हो ये फ़रेब-ए-पैहम तो दम निकल जाए आदमी का

बुतों को तोड़ के ऐसा ख़ुदा बनाना क्या

बुतों की तरह जो हम-शक्ल आदमी का हो

हम मोहब्बत का सबक़ भूल गए

तेरी आँखों ने पढ़ाया क्या है

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मर्सिया 1

 

पुस्तकें 29

ऑडियो 11

उलझी थी ज़ुल्फ़ उस ने सँवारा सँवर गई

कब तक निबाहें ऐसे ग़लत आदमी से हम

कहो न ये कि मोहब्बत है तीरगी से मुझे

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